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शहज़ादी का पुर ख़ुलूस अम्ल अमल

सैय्यद शाहिद जमाल रिज़वी

हिन्दी अनुवाद : सईद हसन

ख़ुदा वंदे आलम अपने बंदों के अम्ल *अमल* को देखकर ख़ुश होता है लेकिन वही अम्ल जिसमें ख़ुलूस हो, जब इंसान ख़ुलूस व मोहब्बत के साथ और सिर्फ ख़ुदा वंदे आलम की रिज़ा के लिए कोई अम्ल करता है तो ख़ुदा इस अम्ल पर बेपनाह अज्र व सवाब अता फ़रमाता है और साथ ही साथ उस पुर ख़ुलूस अम्ल की बरकत से दूसरे लोगों को भी फ़ायदा होते *होता* है ; जनाबे ज़हरा स0 अ0 इस सिलसिले में फ़रमाती हैं : " जो शख़्स अपने कामों को ख़ुदा वंदे आलम के लिए अंजाम देता है तो ख़ुदा उसके लिए बेहतरीन मसलहतें और बरकतें लिख देता है"। 1
अब इस के ज़ैल में ज़रा फ़ातिमा स0 अ0 का ख़ुलूसे अम्ल देखें : जाबिर का बयान है कि एक दिन रसूले ख़ुदा स0 अ0 नमाजे असर *नमाज़े अस्र* पढ़ने के बाद मुसल्ले पर बैठकर हम लोगों को नसीहत फ़रमा रहे थे, इसी दरमियान में एक बूढ़ा शख़्स फटा पुराना लिबास पहने हुए रसूल स0 अ0 की ख़िदमत में हाज़िर हुआ, कमज़ोरी की वजह से वह अपने को संभाल नहीं पा रहा था, रसूल स0 अ0 उसकी तरफ़ मुतवज्जेह हुए और ख़ैरियत पूछा *पूछी*, उनसे अर्ज़ की, ऐ अल्लाह के रसूल! मैं भूका *भूखा* हूं मुझे खाना चाहिए, कपड़ा नहीं है कपड़ा अता कीजिए, मैं मुहताज *मोहताज* हूं मुझ पर अहसान कीजिए।
आं हज़रत ने फ़रमाया : मेरे पास तो कुछ नहीं है लेकिन मैं तुम्हारी रहनुमाई कर देता हूं, अच्छे काम की रहनुमाई करने वाला भी वैसा ही है जैसे अच्छे काम का अंजाम देने वाला, उस घर की तरफ जाओ जिसे ख़ुदा और उसके रसूल दोस्त रहते *रखते* हैं और उस घर में रहने वाले ख़ुदा और रसूल को दोस्त रखते हैं, रहे *राहे* ख़ुदा में ख़र्च करते हैं, तुम फ़ातिमा स0 अ0 के घर जाओ, शायद तुम्हारी ज़रूरत पूरी हो जाए। जनाबे फ़ातिमा स0 अ0 का घर रसूल के घर से मिला था। फिर आपने बिलाल की तरफ़ रुख़ करके कहा : ऐ बिलाल जाओ और फ़ातिमा स0 अ0 के घर तक इसकी रहनुमाई कर दो।
वह शख़्स बिलाल के साथ ज़हरा के घर तक आया और दरवाज़े पर खड़े होकर अर्ज़ की : सलाम हो आप पर, ऐ ख़ानदान ए नबूवत, ऐ मलाएका के मरकज़, ऐ जिब्रईल ए अमीन की मंज़िल गाह।
जनाबे फ़ातिमा स0 अ0 ने फ़रमाया : तुम पर भी सलाम हो... तुम कौन हो और क्या चाहते हो?
अर्ज़ की : मैं बूढ़ा अरब हूं, सख़्ती और परेशानियों की वजह पर हिजरत करके आपके वालिद के पास आया हूं, ऐ बिनते रसूल स0 अ0! मैं बहुत भूखा हूं,मेरे पास लिबास भी नहीं है , मुझ पर अहसान कीजिए, ख़ुदा आप पर रहमतें नाज़िल करेगा। रवायत के मुताबिक उस वक़्त रसूले ख़ुदा स0 अ0, हज़रत अली अ0 स0, और जनाबे फ़ातिमा स0 अ0 ने तीन दिन से कुछ नहीं खाया था, पैगंबर स0 अ0 उनकी हालत से वाक़िफ़ थे, गोस्फ़न्द की वह खाल जिस पर हसन व हुसैन अ0 स0 सोते थे, उसे जनाबे फ़ातिमा स0 अ0 ने बूढ़े अरब की तरफ यह कहा *कह* कर बढ़ा दिया कि ऐ शख़्स! यह ले लो, उम्मीद है कि ख़ुदा तुझ पर रहमत नाज़िल फ़रमाए गा ।
बूढ़ी *बूढ़े* अरब ने अर्ज़ की : ऐ बिनते रसूल स0 अ0 मैंने आपके सामने भूक *भूख* की शिकायत की है, आप मुझे गोस्फ़न्द की खाल अता कर रही हैं, मैं भूका *भूख* की हालत में इसे *इसका* क्या करूंगा। जनाबे फ़ातिमा स0 अ0 ने जब उसकी यह बात सुनी तो अपने *आपने* उस हार की तरफ हाथ बढ़ाया जिसको जनाबे हम्ज़ा बिन अब्दुल मुत्तलिब की बेटी फ़ातिमा ने तोहफ़े के तौर पर दिया था, फ़ातिमा ने यह हार उसके हवाले करते हुए फ़रमाया इसे बेचकर अपनी ज़रूरतें पूरी कर लो।
वह शख़्स हार लेकर मस्जिद में आया और रसूल से कहा : अल्लाह के रसूल! फ़ातिमा स0 अ0 ने मुझे यह हार दिया है और फ़रमाया है कि इसे बेचकर कि इससे अपनी ज़रूरतें पूरी कर लो। यह देखकर रसूल स0 अ0 की आंखों से आंसू जारी हो गए, फ़रमाया : ख़ुदा तुम्हारी ज़रूरतों को क्यों कर पूरी ना करता जबकि यह हार तुमको उसने दिया है जो आदम की तमाम बेटियों की सरदार है।
रसूल की आंखों में आंसू देख कर जनाब अम्मारे यासिर खड़े हुए और कहा : या रसूल अल्लाह अगर इजाज़त हो तो मैं यह हार ख़रीद लूं? आं हज़रत ने फ़रमाया : ख़रीद लो अगर इसकी ख़रीदारी में तमाम जिन्नात व इंसान शरीक हो तो ख़ुदा उन सबको आग से आज़ाद कर देगा।
जनाबे अम्मार ने अरब से कहा : यह हार कितने में बेचोगे? उसने कहा : इतना गोश्त और रोटी मिल जाए जिससे मेरा पेट भर जाए, एक यमनी चादर जिससे अपने को छिपा सकूं और अल्लाह की बारगाह में नमाज़ अदा कर सकूं और एक दीनार जिससे अपने घर पहुंच सकूं। जनाबे अम्मार उस बुढ़े शख़्स को अपने साथ लाए और उससे कहा : इस हार के बदले तुम्हें बीस दीनार दो दिरहम, एक यमनी चादर और एक ऊंट दूँगा जो तुम्हें घर तक पहुंचा देगा और उससे तुम गोश्त रोटी से भी पेट भर सको गे। (यह खै़बर का माले ग़नीमत था जो अम्मार के हिस्से में आया था)
अरब वह लेकर ख़ुशी ख़ुशी चाला गया। उसके जाने के बाद जनाबे अम्मार ने उस हार को ख़ुशबु से मुअत्तर किया और एक यमनी कपड़े में लपेट दिया। जनाबे अम्मार पास एक गुलाम था जिसको उन्होंने खैबर के ही माल से खरीदा था... उन्होंने वह हार गुलाम को देते हुए कहा : इसको रसूल की ख़िदमत में ले जाओ, आज से तुमको भी रसूल को दिया। गुलाम हार लेकर रसूल की ख़िदमत में हाज़िर हुआ और जनाबे अम्मार का पैग़ाम दिया, रसूले ख़ुदा स0 अ0 ने फ़रमाया : हार लेकर फ़ातिमा स0 अ0 के पास जाओ, आज से तुम उनके गुलाम हो।
गुलाम हार लेकर जनाबे फ़ातिमा स0 अ0 की ख़िदमत मे आया और सारी रुदाद बयान किया। जनाबे फ़ातिमा स0 अ0 ने हार ले लिए *लिया* और उस गुलाम को राहे ख़ुदा में आज़ाद कर दिया। गुलाम यह सूरते हाल देख कर हंसने लगा। जब जनाबे फ़ातिमा स0 अ0 ने उसकी हंसी की वजह पूछा तो उसने कहा : इस हार की अंगिनत बरकत देख कर हंस रहा हूं, इसने एक भूके *भूखे* का पेट भरा, और लिबास दिया एक फ़कीर को माल दिया, एक गुलाम को आज़ाद किया और फ़िर अपने मालिक के पास वापस पहुंच गया। कितना बा बरकत है यह हार। 2

1- बेहार उल अनवार, ज67, प249.
2- बेहार उल अनवार, ज43, प52.
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