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फूकों से यह चेराग़ बुझाया न जाए गा

सैय्यद शाहिद जमाल रिज़वी गोपालपुरी

फूकों से यह चेराग़ बुझाया न जाए गा

हज़रत आयातुल्लाहिल उज़मा सैय्यद अली हुसैनी सीसतानी दामत बरकातहू के मुताल्लिक़ "अशरक़ इल अउसत" नामी अख़बार में तौहीन आमेज़ कार्टून की इशाअत पर मज़म्मती बयान

बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम

يُرِيدُونَ لِيُطْفِئُوا نُورَ اللَّهِ بِأَفْوَاهِهِمْ وَاللَّهُ مُتِمُّ نُورِهِ وَلَوْ كَرِهَ الْكَافِرُونَ "
ये लोग चाहते हैं कि नूरे ख़ुदा को अपने मुँह से बुझा दें और अल्लाह अपने नूर को मुकम्मल (पूरा) करने वाला है चाहे ये बात कुफ़्फ़ार (ख़ुदा या उसके हुक्म का इन्कार करने वालों) को कितनी ही नागवार (बुरी लगने वाली) क्यों न हो"। (सुरे सफ़ 8)

"मरजाइयत" आलमे तशय्यो के लिए रूहानी और मानवी फ़ैज़ान है, इबादत व बंदगी की मोतबर ज़मानत और क़वी वहदत की पहचान है, तवील तारिख़ में मरजाइयत ने हस्सास और नाज़ुक घड़ी में इस्लामी मआशरे की रहनुमाई कर के बेड़ा पार लगाया है।

हज़रत आयातुल्लाहिल उज़मा सैय्यद अली हुसैनी सीसतानी दामत बरकातहू
मराजऐ एज़ाम में नुमायां हैसियत के हामिल हैं, आपने अपनी जिंदगी में अरबाबे ईमान के दीनी, इबादी मसाएल के साथ साथ बहुत सी समाजी, मआशेरती और इंसानी मसाएल, मुश्किलात को हल फ़रमाया है और अपनी बसीरत और दूर अंदेशी से सिर्फ़ एक खित्ते की नहीं बल्कि पूरे आलमे इंसानियत की हिफ़ाज़त का सामान फ़राहम किया है, दाइश के ख़िलाफ आप का फ़तवा इसकी एक नुमायां कड़ी है।
ऐसे अज़ीम और इंसानियत का दर्द रखने वाले मरजए आली क़द्र के मुताल्लिक़ "शरक़ील अउसत" नामी अख़बार में तौहीन आमेज़ कार्टून की इशाअत हैरतअंगेज नहीं अफ़सोस नाक भी है और इंसान दोस्ती के क़तई खिलाफ़ है। यह ज़लील लोग मरजाइयत की तौहीन कर के उसकी अहमियत को कम करने की नाकाम कोशिश कर रहे हैं लेकिन इन्हें नहीं मालूम कि मरजाइयत ऐसा रूहानी और इलाही चेराग़ है जिसे फूकं से बुझाया नहीं जा सकता।
हम अराकीने शऊरे विलायत फाउंडेशन हज़रत आयातुल्लाहिल उज़मा सैय्यद अली हुसैनी सीसतानी दामत बरकातहू और दूसरे तमाम मराजए एज़ाम की हिमालय करते हुए इंसानियत से गिरी हुई इस हरकत और तौहीन आमेज़ एक़दाम की शदीद अल्फाज़ में मज़म्मत करते हैं और यह मुतालेबा करते हैं कि इस तौहीन आमेज़ कार्टून की इशाअत पर अख़बार के तमाम जिम्मेदार अफ़राद पूरे आलमे इस्लाम से माफ़ी मांगें और यह ताएहुद दें कि आइंदा इस तरह के ब्यानात या कालम की इशाअत से इजतेनाब करें गें

वस्सलाम
सैय्यद शाहिद जमाल रिज़वी गोपालपुरी
व अराकीने शऊरे विलायत फाउंडेशन (क़ुम ईरान)
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