अहकाम और मसाएल

 

इस्तेहाज़ा

इस्तेहाज़ का ख़ून अधिकतर हल्के रंग वाला, ठंडा, और पतला होता है, और उछले और बिना जलन के निकलता है लेकिन यह भी संभव है कि कभी-कभी काला, लाल, गर्म और गाढ़ा भी आ जाए और उछल कर एवं जलन के साथ निकले जिस औरत को ऐसा ख़ून आए उसे मुस्तहेज़ा कहते हैं ।
इस्तेहाज़ा तीन प्रकार का होता है:
1. क़लीला ( कम )
2. मुतावस्सित (न कम न ज़्यादा)
3. कसीरा ( ज़्यादा )
क़लीला (कम) : उस ख़ून को कहते है कि औरत जब रूई अपनी शर्मगाह में डाले तो उस मे उपर वाले हिस्सा ही पर ख़ून लगा हुआ हो ख़ून पूरी रूई मे भर जाए या उसके अंदर ना भरे।
मुतावस्सित (न कम न ज़्यादा) यह है कि रूई रखने से इस के अंदर तक ख़ून चला जाए लेकिन रूई के उपर न आया हो।
कसीरा (ज़्यादा) : यह वह है कि ख़ून पूरी रूई में भर जाए और उससे बाहर भी आ जाए।
इस्तेहाज़ा क़लीला मे हर नमाज़ के लिए एक वज़ू करना जरूरी है और और रूई को धो ले और शर्मगाह के हिस्से में ख़ून लगा हो तो उसे भी धुले। और इस्तेहज़ा मुतावस्सेता में औरत अपनी नमाज़ों के लिए रोज़ाना एक गुस्ल करे और रूई बदले। इस्तेहज़ा कसीरा मे हर नमाज़ के लिए रूई और कपड़े बदलें और ग़ुस्ल करना वाजिब है, एक नमाज़े सुबाह के लिए, एक नमाज़े ज़ोहर व अस्र के लिए, और एक नमाज़े मग़रिब व इशा के लिए ज़ोहर व अस्र मग़रिब व इशा की नमाज़ों में फ़ासला न करें और अगर फ़ासले से दोनों नमाज़ें पाढ़ें तो अलग अलग ग़ुस्ल करें।
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