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अल्लाह का हुक्म |
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जिब्राइल ए अमीन आसमान से उड़ते हुए रसूले ख़ुदा स0 अ0 के पास आए... ज़िलहिज की 14 तारीख थी हज़ के आमाल ख़त्म हो रहे थे, जिब्राइल ने कहा ऐ रसूल स0 अ0 अल्लाह ताला का हुक्म है कि आज से सभी हज़रत अली अ0 स0 को ((अमीरल मोमेनीन)) कहें फिर जिब्रेल ख़ुद आगे आए और हज़रत अली अ0 स0 को सलाम किया: अस्सलामू अलयका या अमीरल मोमेनीन रसूले अकरम स0 अ0 ख़ुश हुए और अपने अहसाब से फ़रमाया : अल्लाह का अज़ीम फ़रिश्ता आया था, उसने अल्लाह का पैगाम पहुंचाया है कि आज से सभी हज़रत अली अ0 स0 को "अमीरल मोमेनीन" कहकर पुकारें। नबी के असहाब भी एक एक कर के आए और हज़रत अली अ0 स0 से कहा:" सलाम हो आप पर अमीरल मोमेनीन" रसूल स0 अ0 के असहाब में कुछ ऐसे भी थे जिनके दिल में कुछ और जबान पर कुछ और होता था, वह मुनाफ़िक़ थे, रसूले अकरम स0 अ0 और हज़रत अली अ0 स0 से हसद करते थे इसीलिए उन्होंने इस हुक्म पर एतराज करते हुए कहा : यह कैसा हुक्म है? रसूले ख़ुदा नाराज़ हुए, आपने फ़रमाया : मैं अपनी तरफ़ से कुछ नहीं कहता, यह अल्लाह का हुकुम है, इसीलिए अब अली अ0 स0 के पास जाकर कहो: सलाम हूं आप पर अमीरल मोमेनीन। लेकिन उन लोगों ने रसूल स0 अ0 की बात नहीं मानी और अल्लाह के हुक्म की मुख़ालफ़त की।
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